हिन्दी की बिन्दी

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Madan gupta saptu
Madan gupta saptu

मदन गुप्ता सपाटू
कई बार न चाह कर भी हमें सरकारी आदेश मानने पड़ते हैं। कभी कभी ,दो गज की दूरी और मास्क है जरुरी और बहुत हो मजबूरी तो पति -पत्नी को कई बार ,घर में ऐसे सरकारी आदेश तोड़ने पड़ते हैं। ऐसी ही तर्ज में सितंबर महीने में बार बार एनाउंसमेंट होती रहती है कि हिन्दी का सम्मान करें। हिन्दी हमारी राष्ट्र्भाषा है। हमारी राजभाषा है। हिन्दी का प्रयोग करें। हिन्दी में काम करें। हिन्दी में काम करना आसान है। यह सब सुन सुन कर और हर जगह पढ़ पढ़ कर हमारा भी हिन्दी प्रेम जोर मारने लगा। हम ख़तो ख़िबादत हाथ से लिख कर ही किया करते थे। फिर कंप्यूटर आ गए। उसके की बोर्ड पर प्यानों और हारमोनियम की तरह उंगलियां नाचने लगीं। अब उसकी जगह भी स्मार्ट फोन आ गए। बोले तो – ऑल इन वन। प्रेमिका से लेकर पत्नी तक आपकी उंगलियों पर। जब जरा बटन दबाया देख ली तस्वीरें यार। अब तक सब अंग्रेजी में ही मैसेज लिए दिए जा रहे थे। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। पर भाई साहब ! अभी हिन्दी प्रेम उपजे जुम्मा जुम्मा …दो चार दिन भी नहंी बीेते थे कि हमने अपने बरसों पुराने दोस्तों को अपना ही दुशमन बना लिया। शौक शौक में हमने हिन्दी के फोंट्स यानी अक्षर, अपने कंप्यूटर में डलवा लिए। अपने उद्गार अपने मित्रों को ई मेल के जरिए भेजने लगे। एक अंतरंग मित्र ने मेल मिलते ही मोबाइल पर हमारी वो ऐसी तेैसी की कि बता नहीं सकते। उन्होंने हमारे उस पत्र की कॉपी अवलोकनार्थ वापस भेजी जो हमारी दुशमनी की वजह बनी। हमने लिखा था – प्रिय मित्र बदरी प्रसाद और उधर हिन्दी की बिन्दी ने सत्यानाश कर डाला। बदरी प्रसाद की जगह बंदरी प्रसाद छप गया। यह सब ऑटो करेक्ट की मेहरबानी से आटोमैटिक हो गया। हम बैठक बिठाए करेक्ट होते हुए भी ,इनकरेक्ट हो गए। लेकिन बदरी प्रसाद इस अपमान का बदला लेने को, लटठ् लेके उतारु हैं। तब से व्हाट्स एप मैसेज बंद हैं। हमारा नंबर ब्लॉक्ड है। दूसरे मित्र, से भी इसी चक्कर में यारी दोस्ती शहीद हो गई। हमने लिखा था – भाई सकट लाल । उधर चला गया संकट लाल। ऐसी सीरीज में ,ऐसे ही एक संपादक महोदय ने भी इसी चक्कर में लताड़ लगाई कि आपको आंशिक और आशिक शब्दों की जब समझ ही नहीं है तो रचनाएं भेज कर हमारा समय क्यों बरबाद करते हो ? पूरे लेख का भुर्ता बन गया । यहां भी हिन्दी की बिन्दी ने हमारा कैरियर बनने से पहले ही हवा में उड़ा दिया। यानी हमारी बेज्जती एक एपीसोड की बजाए धारावाहिक रुप से होती रही। पिछले सप्ताह पोते का मुन्डन था। पहले तो बैंक में ही लगी, ए.टी. एम मशीन ने हमारा कार्ड ऐसे फेंक कर बाहर मारा मानो हम उससे उधार मांग रहे हों। बैंक के अंदर गए। गार्ड ने एक महिला की तरफ जाने का इशारा किया जहां एक मोतरमा ऐसे विराजमान थी मानों कोैन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट पर बैठी हों। वे मोबाइल पर बिजी थी। पांव मिनट तक हम उनकी रोमांटिक बातों का आन्ंद चुपचाप लते रहे। जैसे ही उनके चेहरे के नॉन स्टॉप हाव भावों और संवादों में ,जहां हमें कौमा नजर आया हमने बड़ी रिस्पैक्टफुली उन्हें बताया कि मैम मुन्डन करवाना है । पच्चीस हजार निकलवाने हैं। वह हल्के से मुस्कुराई फिर बोली,ह्य बचपन में नहीं करवाया……. अब इस उम्र में मुन्डन ? सिर पर बचा ही क्या है ? हमने अपना गुस्सा अपने पास रखते हुए उसे बताया कि मुन्डन मेरा नहीं पोते का है। ए.टी.एम में पैसे निकल ही नहीं रहे हैं। उसने एकाउंट चैक करते हुए हमें डांटा,ह्यनिकलेंगे तो तब,जब खाते में होंगे। इसमें बस 500 पड़े हैं …मिनिमम बैलेंस और आप निकलवा रहे हैं 25 हजार ! शर्म नहीं आती?
हमने बताया कि पिछले हफते ही तो एकांउट में 50 हजार जमा कराए थे। रसीद लाओ फिर देखेंगे।
हम उल्टे पैेर घर दौड़े। टॉप गियर में वापस लौटे। मैडम की अदालत में पेश हुए। वह गुर्राई, फिर गरमाई और दहाड़ी, ये एकाउंट नंबर क्या है और क्या लिखा है जमा पर्ची पर? हमने कहा बिल्कुल सही लिखा है- 1946 नंबर लिखा है। आपको किसी डाक्टर ने कहा था कि डिजिट्स भी हिन्दी में लिखो!
हां डाक्टर त्रिपाठी ने कहा था।
वेटरिनरी डाक्टर हैं क्या?
नहीं हिन्दी के डाक्टर हैं।
यह सुनते ही वे चिल्लाई, इसे उन्नीस सौ छियालिस कौन पढ़ेगा? ये पैसे 9686 में जमा हो चुके हैं और उसने निकाल लिए हैं जिसके एकाउंट में जमा हो गए थे।
हम घबराए, चकराए, सरकारी और प्राईवेट बैंक के फर्क समझ पाए और मैनेजर के आगे गिड़गिड़ाए। वे चिड़चिड़ाए, आप को एकाउंट नंबर हिन्दी में लिखने के लिए किसने कहा था ? हमें भी तैश आ गया। हमने उनके ही बैंक में जगह जगह लटकते मल्टी कलर वॉल पेपर दिखाए जिन पर लिखा था- हिन्दी हमारी राष्ट्र्भाषा है।राजभाषा में काम करें । हिन्दी का सम्मान करें। हिन्दी में काम करना आसान है। हिन्दी अपनाएं। वे मन ही मन बुड़बुड़ाए, थोड़ा खिसिआए, जरा शरमाए….फिर फरमाए, अब देखिए आपने हिन्दी में एकाउंट नंबर में १ लिखा। एक का मुंह खुला हुआ था। हमारी मैडम ने इसे 9 समझ लिया। आपने हिन्दी के ४ लिखने में 4 का मुंह थोड़ा बंद कर दिया जो 8 दिख रहा है। और जो आपने टूटे हाथों से लास्ट वाला ६ छक्का मारा है, वह ९ नौ पढ़ा जा रहा है। हमने हाथ जोड़ते हुए उनसे अनुनय की कि कल हमारे पोते का मुन्डन है, पैसे जरुर चाहिए। आप निकाल दीजिए। उन्होंने बैंकिंग सिस्टम बताते हुए हमें सरल राजभाषा में समझाया कि ये पैसे, ऐसे नहीं निकल सकते। सहायक महाप्रबंधक जी के हस्ताक्षर के बिना कुछ नहीं हो सकता।
वो कहां हैं।
आज कल डाउन हैं।
अप कब होंगे ?
जब कोरोना उतरेगा।
कोरोना कब उतरेगा ?
जब सरकार घोषणा करेगी।
सरकार कब घोषणा करेगी?
जब कोरोना विदा होगा !
वे बोले, आप एक प्रार्थना पत्र दीजिए। महाप्रबंधक जी अवलोकन करेंगे कि यह त्रुटि किस स्तर पर हुई है। आप को हम आपके रजिस्टर्ड मोबाइल पर सूचित कर देंगे कि क्या कार्रवाही की गई है।
हमने प्रशन किया मुन्डन तो कल है। वे समझाने लगे कि मुन्डन फिर कभी करवा लेना। हमने बताया कि पंडित जी ने मुंन्डन का शुभ मुहूर्त तो कल निकाला है। वे एक फाइल पलटते हुए हमें बताने लगे,भईया! बैंकों के मुहूर्त सरकार तय करती है…पंडित जी नहीं।
आगे बोले, देखिए! कल द्वितीय शनिवार का अवकाश है। रविवार को तो आप जानते ही हैं। सोमवार को भारत बंद है। सुरक्षा कारणों से बैंक बंद रहेगा। मंगलवार को मुहर्रम है। बुधवार को बुद्ध जयंती है। गुरुवार को गुरु पूर्णिमा का अवकाश इस बार सरकार ने घोषित कर दिया है। फ्राईडे को गुड फ्राईडे है। शनिवार अर्द्ध्र अवकाश रहेगा , सुबह जल्दी आइयेगा। हो सकता है बड़े साहब को कोरोना छुट्टी दे दे!
नहीं दी तो ?
तो शनिवार संपूर्ण अवकाश हो सकता है।
यह सुन कर हमारा अपना ही मुन्डन बैठे बिठाए हो गया। कभी हम खुद को और कभी हिन्दी की बिन्दी को देखते रहे।

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